Tuesday, July 8, 2008

श्रीखण्ड महादेव कैलाश यात्रा 16 जुलाई 2008 से

सभी शिव भक्त जनों को यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता होगी कि हर साल की भांति इस बार भी श्रीखण्ड महादेव कैलाश यात्रा 16 जुलाई 2008 श्रावण संक्रांति से शुरू होने जा रही है और श्रीखण्ड सेवादल के तत्वावधान में यह 23 जुलाई 2008 तक चलेगी। इस अवधि में 16 जुलाई से 22 जुलाई तक श्रीखण्ड सेवादल द्वारा सिंहगाड़ से प्रतिदिन सुबह 5 : 00 बजे यात्रा के लिए विधिवत जत्था रवाना किया जाएगा।

श्रीखण्ड सेवादल की ओर से आयोजित की जाने वाली वार्षिक यात्रा के विशेष आकर्षण

1 श्रावण संक्रांति तदनुसार 16 जुलाई 2008 के शुभ अवसर पर अम्बिका माता निरमंड एवं दशनामी अखाड़ा निरमंड की 13वीं छड़ी का सिंहगाड़ कैंप में आगमन पर भव्य स्वागत व अगले दिन प्रातः छड़ी यात्रा की श्रीखण्ड कैलाश दर्शन को रवानगी
2 इस वर्ष दूसरी बार अखिल भारतीय मानसरोवर कैलाश यात्रा समिति के पदाधिकारियों का श्रीखण्ड कैलाश यात्रा के लिए 15 जुलाई 2008 को सिंहगाड़ में आगमन।
3 सिंहगाड़ में प्रतिदिन सांय 6:00 बजे महा आरती , सत्संग तथा भजन संध्या।
4 सिंहगाड़ में प्रतिदिन प्रातः 6:00 बजे योग शिविर।

यह स्थान समुद्र ताल से 5155 मीटर की ऊँचाई पर हर है जिस कारण यहाँ मौसम ठण्डा रहता है। अतः यात्रियों से अनुरोध है कि यात्रा के दौरान अपने साथ गर्म कपड़े , कम्बल , छाता , बरसाती व टॉर्च साथ लायें। इस यात्रा की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थ , प्लास्टिक व पॉलीथीन साथ ना लायें। यात्रियों से आग्रह है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ होने पर ही यात्रा में भाग लें। इस यात्रा को पिकनिक या मौजमस्ती के रूप में ना लें और केवल भक्ति भाव व आस्था से ही यात्रा करें।
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यात्रा का संक्षिप्त विवरण

आप रामपुर बुशहर (शिमला से 130 किलोमीटर) से ३५ किलोमीटर की दूरी पर बागीपुल या अरसू सड़क मार्ग से पहुँच सकते हैं। बागीपुल से 7 किलोमीटर जाँव तक गाड़ी से पहुँचा जा सकता है। जाँव से आगे की यात्रा पैदल होती है। यात्रा के तीन पड़ाव सिंहगाड़ , थाचडू और भीम डवार है। जाँव से सिंहगाड़ तीन किलोमीटर, सिंहगाड़ से थाचडू आठ किलोमीटर की दूरी और थाचडू से भीम डवार नौ किलोमीटर की दूरी पर है। यात्रा के तीनों पड़ाव में श्रीखण्ड सेवादल की ओर से यात्रियों की सेवा में लंगर (निशुल्क भोजन व्यवस्था ) दिन रात चलाया जाता है। भीम डवार से श्रीखण्ड कैलाश दर्शन सात किलोमीटर की दूरी पर है तथा दर्शन उपरांत भीम डवार या थाचडू वापिस आना अनिवार्य होता है।